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जब साजन ने खोली मोरी अंगिया-3

时间:2023-11-30 09:40:30 来源:网络整理编辑:आज तक न्यूज़ लाइव

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मैं लेटी थी, वह लेटा था, अंग-अंग को उसने चूसा था,होंठों से उसने सुन री सखी, मेरे अंग-अंग को झकझोर दि

मैं लेटी थी,जबसाजननेखोलीमोरीअंगिया वह लेटा था, अंग-अंग को उसने चूसा था,होंठों से उसने सुन री सखी, मेरे अंग-अंग को झकझोर दियाउस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !.एक किरण ऊष्मा की जैसे, मेरे तन – मन में दौड़ गईमैंने भी उसके अंग को सखी, अपनी मुट्ठी में कैद कियाउस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !.साजन ने अपने अंग को सखी, मेरे स्तन पर फेर दियारगड़ा दोनों चुचूकों पर बारी-बारी, तो आग लगाय दियाउस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !.कहाँ रुई से नाजुक मेरे स्तन, कहाँ वह निर्दय और कठोर सखीपर उस कठोर और निर्दय ने, मुझको था भाव-विभोर कियाउस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !.वह निर्दय और कठोर सखी, दोनों स्तन मध्य बैठ गयामैंने भी उसको हाथों से, दोनों स्तनों से जकड़ लियाउस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !.मांसलता में वह कैद सखी, अनुपम सुख को था ढूंढ रहाआगे जाता पीछे आता, मेरी मांसलता को रौंद दियाउस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !.सिर के नीचे मेरे तकिया था, आँखें थी अब दर्शक मेरीवह उत्तेजित और विभोर सखी, मेरे मन को भरमाय दियाउस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !.मैंने गर्दन को उठा सखी, उसको मुह मांहि खींच लियामुझको तो दो सुख मिले सखी, उसको जिह्वा से सरस कियाउस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !.वह दो स्तन मध्य से आता था, और मुँह में जाय समाता थामैंने होंठों की दी जकड़न, और जिह्वा का उसे दुलार दियाउस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !.अनुभव सुख का कुछ ऐसा था, मुझको बेसुध कर बैठा थालगता था युग यूँ ही बीतें, थम जाये समय जो बीत गयाउस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !.साजन ने कई-कई आह भरीं, और अपनी अखियाँ मूंद लईंमैं बेसुध थी मुझे पता नहीं, कब ज्वालामुखी था फूट गयाउस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !.मुँह, गाल, स्तन, गर्दन, सब आनन्द रस से तर थे सखीवह गर्माहट वह शीतलता, कैसे मैं करूँ बखान सखीमेरे मन के इस आँगन को, वह कामसुधा से लीप गयाउस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !.साजन थे आनन्द के सहभागी, मैं पुन-पुन यह सुख चाहूँ री सखीवह मधुर अगन वह मधुर जलन, मैंने तो चरम सुख पाय लियाउस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !